ऋतुराज वसंत से कवियों एवं लेखकों का विशेष अनुराग होता है . आदिकाल से लेकर आधुनिक काल तक वसंत ऋतु को केंद्र में रखकर अनेक रचनाएँ लिखी गई हैं .
राष्ट्र कवि रामधारी सिंह 'दिनकर' भी वसंत प्रेम से अछूते नहीं रह सके , उनकी ये पंक्तिया इसका प्रमाण हैं__
हाँ ! वसंत की सरस घड़ी है , जी करता मैं भी कुछ गाऊं ;
कवि हूँ ,आज प्रकृति-पूजन में निज कविता के दीप जलाऊं .
उफ़ ! वसंत या मदनबाण है ? वन-वन रूप ज्वार आया है ;
सिहर रही वसुधा रह-रहकर यौवन में उभार आया है .
कसक रही सुंदरी , 'आज मधु ऋतु मेरे कान्त कहाँ ?
दूर द्वीप में प्रतिध्वनि उठती , 'प्यारी और वसंत कहाँ ?'
वसंत के आगमन के साथ ही पृथ्वी स्वर्ग के समान हो जाती है . इसका आगमन ही त्यौहारों के साथ होता है . सरस्वती पूजन से प्रारम्भ हुआ वसंतोत्सव , शिवरात्री के उन्माद एवं होली के उत्साह के साथ अपने चरम पर होता है . होली वैसे तो वसंत के लगभग अंतिम चरण में मनाई जाती है किन्तु इसका उत्साह काफी पहले से ही लोगों में देखने को मिलने लगता है . इस तरह वसंत अपने साथ न केवल प्रकृति की सुन्दर छटा बल्कि त्यौहारों की सौगात भी लेकर आता है .
माघ महीने की पंचमी को वसंत पंचमी का त्यौहार विद्यालयों में भी मनाया जाता है . इस दिन ज्ञान की देवी माँ सरस्वती की पूजा - अर्चना की जाती है . प्राचीन काल में इसी दिन से बच्चों की शिक्षा शुरू की जाती थी . वसंत पंचमी का त्यौहार पूर्वी उत्तर भारत में बड़े ही हर्षोल्लास से मनाया जाता है . इस दिन पीला वस्त्र धारण करने की परम्परा है और माँ सरस्वती को पीले मिष्ठान का भोग भी लगाया जाता है .
प्रकृति के सुकुमार कवि 'सुमित्रानंदन पन्त' ने वसंत का वर्णन इस प्रकार किया है --
चंचल पग दीपशिखा के धर , गृह मृग वन में आया वसंत .
सुलगा फागुन का सूनापन , सौन्दर्य शिखाओं में अनंत .
सौरभ की शीतल ज्वाला से , फैला उर-उर में मधुर दाह .
आया वसंत भर पृथ्वी पर , स्वर्गिक सुन्दरता का प्रवाह .
वसंत ऋतु मानव को यह सन्देश देती है कि दुःख के बाद एक दिन सुख का आगमन भी होता है . जिस तरह परिवर्तनशीलता प्रकृति का नियम है , उसी प्रकार जीवन में भी परिवर्तनशीलता का नियम लागू होता है . जिस प्रकार शिशिर ऋतु के बाद वसंत की मादकता का अपना एक अलग ही आनंद होता है , उसी प्रकार जीवन में भी दुःखों के बाद सुख का आनंद दोगुना हो जाता है .
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